नोएडा में ट्रैफिक जाम के दौरान चोरी करने वाले ‘जालिम गैंग’ का पर्दाफाश हुआ है। यह गैंग पहले से योजनाबद्ध तरीके से ट्रैफिक जाम या धीमी गति में फंसी गाड़ियों को निशाना बनाता था।
गैंग के सदस्य अचानक गाड़ियों के आसपास आकर खिड़की या बोनट पर हाथ मारते थे, जिससे चालक रुक जाता, और फिर एक्सीडेंट या अन्य बहाने से सामान चोरी कर लेते थे।
सेक्टर-58 पुलिस ने सोमवार रात सेक्टर-62 में एक मुठभेड़ के दौरान इस गैंग के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया। मुठभेड़ में एक बदमाश को गोली लगी, जबकि दो अन्य को घेराबंदी में पकड़ा गया। यह गैंग मुख्य रूप से शाम के समय सक्रिय होता था और गूगल मैप पर ट्रैफिक की स्थिति देखकर वारदात करने का स्थान चुनता था।
पुलिस ने बताया कि जब मैप पर ट्रैफिक स्लो होने का संकेत मिलता था, तो ये बदमाश तुरंत वहां पहुंच जाते थे। धीमी गति वाली गाड़ियों को रोकना इनके लिए आसान होता था, और चालक को यह समझने में समय नहीं मिलता था कि क्या हो रहा है।
इसी समय, ये बदमाश पीछे की सीट पर रखा सामान चुरा लेते थे। यह गैंग पिछले कई महीनों से पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था।
मुठभेड़ की जानकारी एडीसीपी मनीष मिश्रा ने मंगलवार को साझा की। उन्होंने बताया कि जब पुलिस सेक्टर-62 में वाहन चेकिंग कर रही थी, तभी एक बाइक पर तीन व्यक्ति आते दिखे।
पुलिस के रुकने का इशारा करने पर वे भागने लगे, और एक बदमाश ने फायरिंग की। पुलिस की जवाबी कार्रवाई में एक गोली एजाज (36), जो मेरठ का निवासी है, के पैर में लगी। अन्य दो बदमाशों को पुलिस ने घेरकर पकड़ा।
पूछताछ के दौरान यह पता चला कि आसिम और उम्रदराज ‘जालिम गैंग’ के मुख्य सदस्य हैं, जबकि एजाज उनका साथी था। ये सभी मेरठ के निवासी हैं और नोएडा सहित पूरे एनसीआर में शाम के समय वारदातों को अंजाम देते थे।
दिन के समय, ये लोग विभिन्न काम करते थे, जैसे ठेला लगाना, राजगीर का काम करना या ई-रिक्शा चलाना, ताकि उनकी पहचान छुपी रहे।
इस गैंग की वारदातों के लिए आमतौर पर 2 से 3 लोगों की आवश्यकता होती थी, और उन्होंने कई युवकों को अपने साथ शामिल कर रखा था। पुलिस ने उनके पास से एक तमंचा, चाकू, चोरी के 6 मोबाइल और एक बाइक बरामद की है। इन पर मेरठ से लेकर एनसीआर तक 12 से अधिक मामले दर्ज हैं।
एसीपी-2 शैव्या गोयल ने बताया कि ‘जालिम गैंग’ के सदस्य आपस में कोडवर्ड्स में बात करते थे। जब उन्हें चोरी किए गए मोबाइल को बेचने के लिए भेजना होता था, तो वे कहते थे कि “सवारी भेजी है,” और अगर चार मोबाइल बेचने होते थे, तो “चार सवारी भेजी हैं” कहकर संवाद करते थे।
उनके नाम भी कोडवर्ड में ‘जालिम-1’, ‘जालिम-2’, ‘जालिम-3’ रखे हुए थे। अगर कोई सदस्य पुलिस की गिरफ्त में आता, तो उसे “नक्की कर दिया गया” कहा जाता और सभी उससे संपर्क तोड़ लेते थे।